BA Semester-1 Raksha Evam Strategic Study - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-1 रक्षा एवं स्त्रातजिक अध्ययन - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 रक्षा एवं स्त्रातजिक अध्ययन

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :250
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2635
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-1 रक्षा एवं सैन्य अध्ययन

प्रश्न- युद्धों के प्रकारों का उल्लेख करते हुए विशेष रूप से मनोवैज्ञानिक युद्ध का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।

उत्तर -

युद्ध कर्म सामाजिक विकास के साथ-साथ विकसित होता रहा है तथा सामाजिक एवं वैज्ञानिक क्षेत्र के विकास का सैनिक क्षेत्र में सदैव अनुप्रयोग किया गया है, फलतः कर्म की रूपरेखा विकसित एवं परिवर्तित होती रही है। आज तक के ज्ञात इतिहास में मुख्यत: निम्नलिखित प्रकार के युद्धों का समावेश किया गया है-

1. हिंसात्मक युद्ध (Shooting War) - दो विरोधी शक्तियों के मध्य लम्बे समय तक चलने वाले संघर्ष जिसमें विनाशकारी शास्त्रों का प्रत्यक्ष रूप से प्रयोग होता है, हिंसात्मक युद्ध कहलाते हैं। इन युद्धों की विशेषता हिंसा होती है। उदाहरणार्थ- प्रथम एवं द्वितीय विश्वयुद्ध तथा 1965 और 1971 का भारत-पाक युद्ध। इन युद्धों में खुलकर विनाशकारी शस्त्रों का प्रयोग किया गया था लाखों लोग मारे गये। इस प्रकार के युद्ध अक्सर अपने उद्देश्य की प्राप्ति तथा शक्ति प्रदर्शन के लिए किये जाते हैं। इन युद्धों में दोनों विरोधी शक्तियों अर्थात् दोनों पक्षों को भारी हानि उठानी पड़ती है तथा कभी-कभी विजय से प्राप्त लाभों द्वारा भी युद्ध में हुई हानि की क्षतिपूर्ति करना कठिन हो जाता है। इस प्रकार के युद्धों के भी अनेकों रूप है जिनका प्रयोग निम्न प्रकार के युद्धों में किया जाता है

(i) परमाणु युद्ध - इसके अतंर्गत परमाणु शस्त्रों का प्रयोग किया जाता है जोकि अत्यन्त ही प्रलयंकारी हो सकता है। इसका उदाहरण द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान पर गिराये गये परमाणु बम हैं। इस युद्ध में आज तक की सर्वाधिक जन हानि हुई। परमाणु शस्त्रों के निर्माण तथा विकास के कारण आज के युग को परमाणु युग भी कहते हैं।।

(ii) रासायनिक युद्ध - हिंसात्मक युद्धों में अधिक से अधिक हानि पहुँचाने के लिए रासायनिक अस्त्र-शस्त्रों का सहारा भी लिया जाता है। दिसम्बर 1915 से जर्मनी ने फॉसजीन नामक रसायनिक गैस का प्रयोग प्रथम विश्वयुद्ध में किया था। इसके द्वारा दूर से ही शत्रु पक्ष में तबाही मचाई जा सकती है। रासायनिक युद्ध अत्यन्त घातक सिद्ध हो सकता है।

(iii) जीवाणु युद्ध - जीवाणु युद्ध के द्वारा अन्य शस्त्रों के प्रयोग के बिना ही शत्रु पक्ष को परास्त किया जा सकता है। इसके अंतर्गत खतरनाक जीवाणुओं का प्रयोग किया जाता है जिन्हे किसी न किसी प्रकार के शत्रु क्षेत्र में पहुँचा दिया जाता है। इसके प्रभाव से मनुष्य में अनेकों बीमारियाँ फैल जाती है तथा मौत भी सम्भव है। सन् 2000 में अमेरिका द्वारा अफगानिस्तान पर हमला करने के जवाब में ओसामा बिन लादेन ने अमेरिका के खिलाफ (एंथ्रेक्स) नामक जीवाणु का प्रयोग किया था।

2. शीत युद्ध (Cold War) - शीत युद्ध हिंसात्मक युद्ध के विपरीत कार्य करता है। इसमें हिंसा का प्रयोग न करके अन्य उपायों के द्वारा अपने उद्देश्यों की पूर्ति की जाती है। शीत युद्धों में किसी प्रकार के हथियारों का प्रयोग नहीं होता है लेकिन अधिक समय तक चलने वाले शीत युद्ध कभी-कभी युद्ध का रूप धारण कर लेते हैं, तब इसका, स्वरूप अत्यन्त भयानक हो जाता है। शीत युद्धों का प्रयोग प्राचीन समय से होता चला आ रहा है।

शीत युद्ध को परिभाषित करते हुए मेजर श्यामलाल कहते है कि "शीत युद्ध वह आक्रमण है जो बिना प्रत्यक्ष शत्रुता के अपने उद्देश्य को पूरा करने का प्रयास करता है। यह मनोवैज्ञानिक रासायनिक, आर्थिक तथा शत्रु विरोधी नागरिकों जैसे असैनिक साधनों का प्रयोग करता है। इसका उद्देश्य शत्रु की सांग्रामिक क्षमता को क्षीण करना है ताकि हिंसात्मक संघर्ष के प्रारम्भ होने से पूर्व ही वह आत्मसमर्पण कर दे। "

एक अन्य जगह शीत युद्ध को निम्न प्रकार से परिभाषित किया गया है - "युद्ध के अतिरिक्त अन्य सभी उपायों से शरारत करने की नीति शीत युद्ध है।"

इस प्रकार यह कहा जा सकता है शीत युद्ध का तात्पर्य एक ऐसे संघर्ष से है जिसमें शास्त्रियों के अतिरिक्त विभिन्न प्रकार के अहिंसात्मक उपायों को अपनाकर शत्रु की यौद्धिक क्षमता को नष्ट करने का प्रयास किया जाता है और यदि यह उपाय सफल हो जाता है तो वास्तविक हिंसात्मक युद्ध की आवश्यकता नहीं पड़ती है। शीत युद्ध के द्वारा शत्रु पक्ष की आन्तरिक कमजोरियों का लाभ उठाया जा सकता है। शीत युद्ध के द्वारा ही विश्व जनमत को भी प्राप्त किया जा सकता है। शीत युद्ध अक्सर बहुत लम्बे समय तक चलता रहता है। अमेरिका और रूस के मध्य शीत युद्ध कई वर्षों चल रहा है। इसी प्रकार भारत और पाकिस्तान के मध्य भी शीत युद्ध चलता रहता है जो कभी-कभी छुटपुट युद्धों का रूप ले लेता है। भारत में शत्रु देश चीन और पाकिस्तान भारत विरोधी प्रचार करते रहते हैं जोकि शीत युद्ध का ही एक उदाहरण है।

शीत युद्ध मनोवैज्ञानिक तथा आर्थिक रूप में लड़े जाते हैं। मनोवैज्ञानिक तरीकों से शत्रु के राष्ट्र में वहाँ के नागरिकों को उन्हीं की सरकार के खिलाफ भड़काया जाता है। आर्थिक रूप से शत्रु राष्ट्र के आर्थिक स्त्रोतों के साधन खत्म करके वहाँ विद्रोह पैदा किया जा सकता है। इन सभी उपायों से शत्रु राष्ट्र वास्तविक युद्ध होने से पूर्व ही आत्म-समर्पण कर देता है।

3. मनोवैज्ञानिक युद्ध (Psychological War Fare)

मनोविज्ञान का सम्बन्ध सीधे मनुष्य से है और सेना में मनोविज्ञान की अत्यधिक आवश्यकता पड़ती है। मनोविज्ञान की सहायता से ही मनोवैज्ञानिक युद्ध लड़े जाते हैं। मनोवैज्ञानिकों के युद्ध प्राचीनकाल से लेकर आज तक लड़े जा रहे हैं। युद्ध के समय प्रयुक्त की जाने वाली शक्तियों का सम्बन्ध किसी न किसी रूप से राष्ट्र के नागरिकों से होता है जो सेना के लिए विभिन्न सैन्य सामग्री और उपकरण तथा खाद्यान्न का निर्माण तथा पैदावार करते हैं। युद्ध के समय राष्ट्र की जनता भी अपने सैनिकों को सहयोग देने के लिए तत्पर रहती है। आम जनता की यह भावना भी सैनिकों का मनोबल बढ़ाने में अत्यधिक सहयोग प्रदान करती हैं। यह सभी बातें राष्ट्र की शक्ति बढ़ाती है और इस प्रकार की शक्ति को समाप्त करने की क्रिया मनोवैज्ञानिक युद्ध द्वारा ही सम्भव है। दूसरे शब्दों में युद्ध से पूर्व या युद्ध काल के समय शत्रु की गतिविधियों की जानकारी प्राप्त करके शत्रु सैनिकों के मनोबल को गिराने तथा शत्रु सैनिकों को उसी की सरकार के खिलाफ भड़काने तथा विद्रोह के लिए विवश करने के प्रयासों को ही मनोवैज्ञानिक युद्ध कहते हैं। मनोवैज्ञानिक युद्ध का वास्तविक विकास द्वितीय विश्वयुद्ध के समय में हुआ तथा आज मनोवैज्ञानिक युद्ध का विशेष महत्व है। इस युद्ध के द्वारा शस्त्रों के प्रयोग के बिना ही युद्ध जीता जा सकता है।

मनोवैज्ञानिक युद्ध के साधन

मनोवैज्ञानिक युद्ध का प्रमुख साधन प्रचार (Propaganda ) है। प्रचार की उपयोगिता पर प्रकाश डालते हुए लूडेन डर्फ ने लिखा है कि- "ऐसे अनेक अवसर तथा परिस्थितियाँ होती है जब उचित शब्दों में कहा गया तथा उचित अवसरों पर प्रयुक्त प्रचार सैकड़ों टन उग्र विस्फोट पदार्थ की अपेक्षा अधिक कारगर सिद्ध होता है। "

प्रचार के साधन प्रचार के विभिन्न प्रकार के साधनों का प्रयोग किया जाता है। इन साधनों में रेडियों, टेलीविजन, अखबार तथा पत्र-पत्रिकाएँ और विभिन्न प्रकार के परचों का उपयोग किया जाता है। यह प्रचार शत्रु तथा स्वयं के क्षेत्र में भी किया जाता है। इस प्रचार के माध्यम से यह साबित करने की कोशिश की जाती है कि शत्रु गलत है तथा हम सही है, हम ईमानदार है और शत्रु बेईमान है, हम शक्तिशाली है तथा शत्रु निर्बल है और विजय हमारी होगी और शत्रु हारेगा।

प्रचार के रूप -  प्रचार को मुख्यतः दो उपविभागों में विभाजित किया जाता है जो निम्नलिखित है-

1. श्वेत प्रचार (White Propoganda) इस प्रकार के प्रचार के द्वारा अपने पक्ष की सार्थकता एवं औचित्य पर प्रकाश डाला जाता है। इस प्रकार के द्वारा अपने और शत्रु के राज्य की जनता में यह विश्वास भरने का प्रयास किया जाता है कि हमारी नीतियाँ उचित एवं उपयोगी हैं और हम अवश्य असफल होंगे। इस प्रचार के द्वारा अपनी जनता एवं सैनिकों का मनोबल बढ़ाया जा सकता है तथा शत्रु में अपनी शक्ति का प्रचार करके शत्रु सैनिकों का मनोबल गिराना तथा शत्रु राज्य की जनता में वहाँ की सरकार के खिलाफ भावनाएं पैदा की जा सकती है।

2. मिथ्या प्रचार (Black Propoganda) - इस प्रकार का प्रचार शत्रु के सम्भावित क्षेत्र तथा शत्रु के राज्य में ही किये जाते हैं। इस प्रकार के प्रचारों को ऐसे साधनों के द्वारा प्रसारित किया जाता है जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि यह प्रचार उसी देश के अन्दर से ही हो रहा है, चाहे वह प्रचार उस देश के बाहर से ही किया जायें। इस प्रकार के प्रचार को वहाँ की जनता अपनी सरकार के द्वारा प्रसारित किया हुआ प्रचार समझती है और उस पर बहुत जल्द विश्वास कर लेती है। इस प्रकार के प्रचार का उद्देश्य शत्रु की जनता में उसकी अपनी सरकार के खिलाफ अविश्वास पैदा करना है तथा वहाँ की जनता को यह बताना है कि उसकी सरकार सैनिक दृष्टिकोण से अपने शत्रु की अपेक्षा बहुत निर्बल है। यदि शत्रु राष्ट्र में गृह युद्ध चल रहा है या वहाँ के लोगों की विचारधाराओं में मतभेद है तो किसी वर्ग विशेष की सहायता से यह प्रचार आसानी से फैलाया जा सकता है। आधुनिककाल में साम्यवादी दलों के माध्यम से इस प्रकार के प्रचार सफल हो जाते हैं।

मनोवैज्ञानिक युद्ध के लक्ष्य तथा कार्य मनोवैज्ञानिक युद्ध का प्रयोग हिंसात्मक तथा शीत दोनों प्रकार के युद्धों में किया जाता है। अतः परिस्थिति के अनुसार इसके कार्यों को दो भागों में विभाजित कर सकते हैं। हिंसात्मक युद्ध के समय विभिन्न प्रकार के प्रचारों एवं अफवाहों के द्वारा शत्रु देश की जनता में यह विश्वास पैदा करना है कि हम अधिक शक्तिशाली है तथा युद्ध के विभिन्न मोर्चो पर हमारी विजय हो रही है और शत्रु की हार निश्चित है।

शीत युद्ध के प्रमुख अस्त्रों में से मनोवैज्ञानिक युद्ध एक है जो शत्रुता प्रारम्भ होने से बहुत पहले ही अपना कार्य प्रारम्भ कर देता है। हिंसात्मक युद्ध के समय भी तथा युद्ध में विजय प्राप्त करने के बाद शान्तिकाल में भी यह मनोवैज्ञानिक युद्ध चलता रहता है। शीत युद्ध काल में इसके कार्य निम्नलिखित हैं -

(1) शत्रु द्वारा अधिकृत क्षेत्र में अपने पक्ष की प्रबलता स्थापित करना।

(2) शत्रु के आन्तरिक मोर्चों सेनाओं आदि में कलह एवं मतभेद पैदा करना।

(3) यदि संभव हो तो तटस्थ देशों को तटस्थ रखने का प्रयास करना तथा उन्हें सहयोग प्रदान करना।

(4) शत्रु के मित्रों में विभेद उत्पन्न कर उन्हें निष्क्रिय करना।

(5) शत्रु की जनता का मनोबल गिराना।

इस प्रकार हम देखते हैं कि यदि मनोवैज्ञानिक युद्ध को उचित ढंग से तथा उचित समय पर लड़ा जाये तो वास्तविक युद्ध का कार्य अत्यन्त सरल एवं सफलतापूर्ण होगा। इन्हीं कारणों से हिटलर ने मनोवैज्ञानिक युद्ध को अपनाया तथा अनेकों राष्ट्रों पर विजय स्थापित की। मनोवैज्ञानिक युद्ध की महानता को दर्शाते हुए हिटलर ने स्वयं कहा है कि "मैं शत्रु को सैनिक साधनों से क्यों पराजित करूँ यदि मैं अन्य साधनों (मनोवैज्ञानिक ढंग) से इसे अच्छी तरह और कम हानि के साथ कर सकता हूँ।" एक अन्य जगह पर हिटलर ने कहा है कि "हमारी सभी वास्तविक लड़ाइयाँ तो सैनिक युद्ध संक्रियाओं के प्रारम्भ होने से पूर्व ही लड़ी जा चुकी होंगी।" इन कथनों के आधार पर यह समझना अत्यन्त सरल है कि हिटलर ने युद्धों में विजय मनोवैज्ञानिक युद्ध के द्वारा ही प्राप्त की है।

4. आर्थिक युद्ध (Economic War) -

किसी भी राष्ट्र को युद्ध करने के लिए आर्थिक रूप से सुदृढ़ होना आवश्यक है। इसीलिए अर्थतंत्र को किसी भी राष्ट्र की सैन्य क्षमता का महत्वपूर्ण तत्व माना जाता है जिसके सन्तुलन के बिना युद्ध में सफलता प्राप्त करना असम्भव है। युद्ध के समय विभिन्न प्रकार की आवश्यक सैन्य सामग्री एवं साज-सज्जा की आवश्यकता पड़ती है। इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए औद्योगिक उत्पादनों को बढ़ाया तथा प्राकृतिक संसाधनों को विकसित किया जाता है। इसके अतिरिक्त अन्य देशों से यौद्धिक सामग्रियों तथा युद्धोपयोगी वस्तुओं को अधिकाधिक मात्रा में एकत्र किया जाता है। आर्थिक युद्ध के अन्तर्गत स्वयं के लिए साधनों को जुटाना तथा शत्रु को इससे वंचित करने का प्रयास किया जाता है ताकि शत्रु युद्ध के समय इन साधनों का उपयोग न कर सकें तथा इन साधनों के अभाव में आत्म-समर्पण कर दें। शीत युद्ध तथा हिंसात्मक युद्ध के समय आर्थिक युद्ध के निम्नलिखित उद्देश्य होते हैं -

(क) शीत युद्ध के समय
1. स्वयं के लिए यौद्धिक सामग्रियों को इकट्ठा करना तथा शत्रु को इससे वंचित करना।
2. शत्रु राष्ट्र में फूट डलवा कर हड़तालें, आन्दोलन आदि करवाकर औद्योगिक एवं विशेषकर रक्षा संसाधनों में बनने वाले उत्पादों को कम करना।
3. स्वयं के देश में यौद्धिक उत्पादनों के निर्माण की गति बढ़ाना तथा इसका प्रयोग असैनिक कार्यों में न होने देना।
4. शत्रु के लिए आर्थिक समस्यायें पैदा करना।

(ख) हिंसात्मक वास्तविक युद्ध में -

1. शत्रु की आर्थिक नाकेबन्दी करना।

2. शत्रु के आर्थिक ठिकानों को नष्ट करना।

3. शत्रु के परिवहन मार्ग को नष्ट करना।

4. शत्रु के औद्योगिक एवं रक्षा संस्थानों को नष्ट करना।

5. विश्व बाजार से अच्छी से अच्छी रक्षा सामग्री खुद खरीद कर शत्रु तक न पहुँचने देना।

6. शत्रु तक युद्धोपयोगी सैन्य सामग्री व अन्य वस्तुएँ न पहुँचने देना ताकि उन वस्तुओं के अभाव में शत्रु का मनोबल गिर जाये और वह आत्मसमर्पण करने पर विवश हो जाये।

इन उद्देश्यों को पढ़ने के बाद यह समझना अत्यन्त सरल हो जाता है कि आर्थिक युद्ध का तात्पर्य बिना खून-खराबे और हथियारों का कम से कम प्रयोग करके शत्रु को आत्मसमर्पण करने पर विवश करना। आर्थिक युद्ध का कार्य शत्रु की शक्ति को क्षीण करना तथा खुद की शक्ति को सुदृढ़ करना है।

5. राजनीति युद्ध (Diplomatic War)

राजनीतिक युद्ध का अर्थ इसके नाम से ही लगाया जा सकता है, यानि राजनीतिक क्षेत्र में शान्तिपूर्ण एवं चातुर्यपूर्ण प्रयत्नों के द्वारा राष्ट्र को बढ़ाना राजनीतिक युद्ध का कार्य है। राजनीतिक युद्ध एक राष्ट्र से लेकर पूरे विश्व के राज्यों में भी हो सकता है। राजनीतिक युद्ध में सफलता किसी भी देश की मजबूत सैन्य शक्ति के दबाव से ही प्राप्त की जा सकती है। इसका एक जीता जागता उदाहरण विश्व की महान शक्ति अमेरिका सर्वोपरि है।

राजनीतिक युद्ध का तात्पर्य विभिन्न राजनीतिक चालों की सहायता से शत्रु को राजनीति के क्षेत्र में पराजित करने से है। राजनीति युद्ध में सफलता प्राप्त के लिए निम्नलिखित कार्य आवश्यक होते हैं -

1.शत्रु के मित्र राष्ट्रों से संधि करके उनसे सहयोग प्राप्त करना ताकि भविष्य में युद्ध की स्थिति में शत्रु को उन राष्ट्रों से सहायता न प्राप्त हो सकें।

2. उन देशों से मित्रता करना जो शक्तिशाली है और जो आवश्यकता पड़ने पर युद्ध में सहयोग प्रदान कर सकें।

3. विभिन्न स्त्रोतों से शत्रु की शक्ति का पता लगाकर खुद की शक्ति को उसकी शक्ति से अधिक करना तथा उसकी शक्ति को क्षीण करने का प्रयास करना।

4. भौगोलिक दृष्टि से शत्रु की सीमा से लगे राष्ट्रों से मित्रता करना ताकि वास्तविक युद्ध के समय वे राष्ट्र अपनी भूमि का प्रयोग युद्धोपयोगी कार्यों में करने दें।

5. शत्रु के राष्ट्र में जातिवाद, भेदभाव तथा आन्तरिक कलह पैदा करके आन्तरिक रूप से शत्रु को कमजोर करना।

6. शत्रु राष्ट्र की अर्थव्यवस्था को कमजोर करना।

7. विभिन्न प्रकार के साधनों एवं प्रयत्नों द्वारा शत्रु के मनोबल को गिराना तथा उसे मनोवैज्ञानिक रूप से कमजोर करना।

इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि राजनीतिक युद्ध का उद्देश्य विभिन्न प्रयासों द्वारा विश्व जनमत को अपने पक्ष में करना तथा शत्रु राष्ट्र को राजनीतिक एवं मनोवैज्ञानिक रूप से निष्क्रिय करना है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- स्त्रातेजी अथवा कूटयोजना (Strategy) का क्या अभिप्राय है? इसकी विभिन्न परिभाषाओं की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  2. प्रश्न- स्त्रातेजी का उद्देश्य क्या है? स्त्रातेजी के उद्देश्यों की पूर्ति के लिये क्या उपाय किये जाते हैं?
  3. प्रश्न- स्त्रातेजी के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
  4. प्रश्न- महान स्त्रातेजी पर एक लेख लिखिये तथा स्त्रातेजी एवं महान स्त्रातेजी में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
  5. प्रश्न- युद्ध कौशलात्मक भूगोल से आप क्या समझते हैं? सैन्य दृष्टि से इसका अध्ययन क्यों आवश्यक है?
  6. प्रश्न- राष्ट्रीय नीति के साधन के रूप में युद्ध की उपयोगिता पर प्रकाश डालिये।
  7. प्रश्न- स्त्रातेजी का अर्थ तथा परिभाषा लिखिये।
  8. प्रश्न- स्त्रातेजिक गतिविधियाँ तथा चालें किसे कहते हैं तथा उनमें क्या अन्तर है?
  9. प्रश्न- महान स्त्रातेजी (Great Strategy) क्या है?
  10. प्रश्न- पैरालिसिस स्त्रातेजी पर प्रकाश डालिये।
  11. प्रश्न- युद्ध की परिभाषा दीजिए। इसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  12. प्रश्न- युद्धों के विकास पर एक विस्तृत लेख लिखिए।
  13. प्रश्न- युद्ध से आप क्या समझते है? युद्ध की विशेषताएँ बताते हुए इसकी सर्वव्यापकता पर प्रकाश डालिए।
  14. प्रश्न- युद्ध की चक्रक प्रक्रिया (Cycle of war) का उल्लेख कीजिए।
  15. प्रश्न- युद्ध और शान्ति में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  16. प्रश्न- युद्ध से आप क्या समझते हैं?
  17. प्रश्न- वैदिककालीन सैन्य पद्धति एवं युद्धकला का वर्णन कीजिए।
  18. प्रश्न- राजदूतों के कर्तव्यों का विशेष उल्लेख करते हुए प्राचीन भारत की युद्ध कूटनीति पर एक निबन्ध लिखिये।
  19. प्रश्न- समय और कालानुकूल कुरुक्षेत्र के युद्ध की अपेक्षा रामायण का युद्ध तुलनात्मक रूप से सीमित व स्थानीय था। कुरुक्षेत्र के युद्ध को तुलनात्मक रूप में सम्पूर्ण और 'असीमित' रूप देने में राजनैतिक तथा सैन्य धारणाओं ने क्या सहयोग दिया? समीक्षा कीजिए।
  20. प्रश्न- वैदिक कालीन "दस राजाओं के युद्ध" का वर्णन कीजिये।
  21. प्रश्न- महाकाव्यों के काल में युद्धों के वास्तविक कारण क्या होते थे?
  22. प्रश्न- महाकाव्यों के काल में युद्ध के कौन-कौन से नियम होते थे?
  23. प्रश्न- महाकाव्यकालीन युद्ध के प्रकार एवं नियमों की विवेचना कीजिए।
  24. प्रश्न- वैदिक काल के रण वाद्य यन्त्रों के बारे में लिखिये।
  25. प्रश्न- पौराणिक काल में युद्धों के क्या कारण थे?
  26. प्रश्न- प्राचीन भारतीय सेना के युद्ध के नियमों को बताइये।
  27. प्रश्न- युद्ध के विभिन्न सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  28. प्रश्न- युद्धों के सिद्धान्तों में प्रशासन (Administration) का क्या महत्व है?
  29. प्रश्न- नीति के साधन के रूप में युद्ध के प्रयोग पर सविस्तार एक लेख लिखिए।
  30. प्रश्न- राष्ट्रीय नीति के साधन के रूप में युद्ध की उपयोगिता पर प्रकाश डालिये।
  31. प्रश्न- राष्ट्रीय शक्ति के निर्माण में युद्ध की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
  32. प्रश्न- अतीत को युद्धों की तुलना में वर्तमान समय में युद्धों की संख्या में कमी का क्या कारण है? प्रकाश डालिए।
  33. प्रश्न- आधुनिक युद्ध की प्रकृति और विशेषताओं की विस्तार से व्याख्या कीजिए।
  34. प्रश्न- आधुनिक युद्ध को परिभाषित कीजिए।
  35. प्रश्न- गुरिल्ला स्त्रातेजी पर माओत्से तुंग के सिद्धान्तों का उल्लेख करते हुए गुरिल्ला युद्ध के चरणों पर प्रकाश डालिए।
  36. प्रश्न- चे ग्वेरा के गुरिल्ला युद्ध सम्बन्धी विभिन्न विचारों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  37. प्रश्न- गुरिल्ला युद्ध (छापामार युद्ध) के उद्देश्यों का वर्णन कीजिए तथा गुरिल्ला विरोधी अभियान पर प्रकाश डालिए।
  38. प्रश्न- प्रति विप्लवकारी (Counter Insurgency) युद्ध के तत्वों तथा अवस्थाओं पर प्रकाश डालिए।
  39. प्रश्न- चीन की कृषक क्रान्ति में छापामार युद्धकला की भूमिका पर अपने विचार लिखिए।
  40. प्रश्न- चे ग्वेरा ने किन तत्वों को छापामार सैन्य संक्रिया हेतु परिहार्य माना है?
  41. प्रश्न- छापामार युद्ध कर्म (Gurilla Warfare) में चे ग्वेरा के योगदान की विवेचना कीजिए।
  42. प्रश्न- गुरिल्ला युद्ध में प्रचार की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
  43. प्रश्न- गुरिल्ला युद्ध कर्म की स्त्रातेजी और सामरिकी पर प्रकाश डालिये।
  44. प्रश्न- छापामार युद्ध को परिभाषित करते हुए इसके सम्बन्ध में चे ग्वेरा की विचारधारा का वर्णन कीजिए।
  45. प्रश्न- लेनिन की गुरिल्ला युद्ध-नीति की विवेचना कीजिए।
  46. प्रश्न- गुरिल्ला युद्ध क्या है?
  47. प्रश्न- मनोवैज्ञानिक युद्ध कर्म पर एक निबन्ध लिखिए।
  48. प्रश्न- आधुनिक युद्ध क्या है? 'आधुनिक युद्ध अन्ततः मनोवैज्ञानिक है' विस्तृत रूप से विवेचना कीजिए।
  49. प्रश्न- सैन्य मनोविज्ञान के बढ़ते प्रभाव क्षेत्र का वर्णन कीजिए।
  50. प्रश्न- मनोवैज्ञानिक युद्ध के कौन-कौन से हथियार हैं? व्याख्या कीजिए।
  51. प्रश्न- प्रचार को परिभाषित करते हुए इसके विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  52. प्रश्न- अफवाह (Rumor) क्या है? युद्ध में इसके महत्व का उल्लेख करते हुए अफवाहों को नियंत्रित करने की विधियों का वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- आतंक (Panic) से आप क्या समझते हैं? आंतंक पर नियंत्रण पाने की विधि का वर्णन कीजिए।
  54. प्रश्न- भय (Fear) क्या है? युद्ध के दौरान भय पर नियंत्रण रखने वाले विभिन्न उपायों का वर्णन कीजिए।
  55. प्रश्न- बुद्धि परिवर्तन (Brain Washing) क्या हैं? बुद्धि परिवर्तन की तकनीकों तथा इससे बचने के उपायों का उल्लेख कीजिए।
  56. प्रश्न- युद्धों के प्रकारों का उल्लेख करते हुए विशेष रूप से मनोवैज्ञानिक युद्ध का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  57. प्रश्न- युद्ध की परिभाषा दीजिए। युद्ध के सामाजिक, राजनैतिक, सैन्य एवं मनोवैज्ञानिक कारणों की विवेचना कीजिए।
  58. प्रश्न- कूटनीतिक प्रचार (Strategic Propaganda ) एवं समस्तान्त्रिक प्रचार (Tactical Propaganda ) में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
  59. प्रश्न- प्रचार एवं अफवाह में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  60. प्रश्न- मनोवैज्ञानिक युद्ध की उपयोगिता बताइये।
  61. प्रश्न- युद्ध एक आर्थिक समस्या के रूप में विवेचना कीजिए।
  62. प्रश्न- आर्थिक युद्ध की परिभाषा दीजिए। आर्थिक युद्ध कर्म पर एक निबन्ध लिखिए।
  63. प्रश्न- आधुनिक युद्ध राजनीतिक सैनिक कारणों की अपेक्षा सामाजिक आर्थिक कारकों के कारण अधिक होते हैं। व्याख्या कीजिए।
  64. प्रश्न- आर्थिक क्षमता से आप क्या समझते हैं?
  65. प्रश्न- आधुनिक युद्ध में आर्थिक व्यवस्था का महत्व बताइये।
  66. प्रश्न- युद्ध को प्रभावित करने वाले तत्वों में से प्राकृतिक संसाधन पर प्रकाश डालिए।
  67. प्रश्न- युद्ध कौशलात्मक आर्थिक क्षमताएँ व दुर्बलताएँ बताइये।
  68. प्रश्न- युद्धोपरान्त उत्पन्न विभिन्न आर्थिक समस्याओं का विश्लेषण कीजिये
  69. प्रश्न- युद्ध की आर्थिक समस्यायें लिखिए?
  70. प्रश्न- युद्ध के आर्थिक साधन क्या हैं?
  71. प्रश्न- परमाणु भयादोहन के हेनरी किसिंजर के विचारों की व्याख्या कीजिये।
  72. प्रश्न- आणविक भयादोहन पर एक निबन्ध लिखिये।
  73. प्रश्न- परमाणु भयादोहन और रक्षा के सन्दर्भ में निम्नलिखित सैन्य विचारकों के विचार लिखिए। (i) आन्द्रे ब्यूफ्रे (Andre Beaufre), (ii) वाई. हरकाबी (Y. Harkabi), (iii) लिडिल हार्ट (Liddle Hart), (iv) हेनरी किसिंजर (Henery Kissinger) |
  74. प्रश्न- परमाणु युग में सशस्त्र सेनाओं की भूमिका की विस्तृत समीक्षा कीजिए।
  75. प्रश्न- मैक्यावली से परमाणु युग तक के विचारों एवं प्रचलनों की विवेचना कीजिए।
  76. प्रश्न- आणविक युग में युद्ध की आधुनिक स्रातेजी को कैसे प्रयोग किया जायेगा?
  77. प्रश्न- 123 समझौते पर विस्तार से लिखिए।
  78. प्रश्न- परमाणविक युद्ध की प्रकृति एवं विशिष्टताओं का वर्णन कीजिए।
  79. प्रश्न- आणविक शीत से आप क्या समझते हैं?
  80. प्रश्न- नाभिकीय तनाव को स्पष्ट कीजिए।
  81. प्रश्न- परमाणु बम का प्रथम बार प्रयोग कब और कहाँ हुआ?
  82. प्रश्न- हेनरी किसिंजर के नाभिकीय सिद्धान्त का मूल्यांकन कीजिए।
  83. प्रश्न- व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबन्ध सन्धि (C.T.B.T) से आप क्या समझते हैं?
  84. प्रश्न- हरकावी के नाभिकीय भय निवारण- सिद्धान्त का मूल्यांकन कीजिए।
  85. प्रश्न- आणविक युग पर प्रकाश डालिए।
  86. प्रश्न- हर्काबी के नाभिकीय युद्ध संक्रिया सम्बन्धी विचारों की समीक्षा कीजिए।
  87. प्रश्न- रासायनिक तथा जैविक अस्त्र क्या हैं? इनके प्रयोग से होने वाले प्रभावों की विवेचना कीजिए।
  88. प्रश्न- रासायनिक युद्ध किसे कहते हैं? विस्तार से उदाहरण सहित समझाइए।
  89. प्रश्न- विभिन्न प्रकार के रासायनिक हथियारों पर प्रकाश डालिए।
  90. प्रश्न- जैविक युद्ध पर एक निबन्ध लिखिए।
  91. प्रश्न- रासायनिक एवं जैविक युद्ध कर्म से बचाव हेतु तुलनात्मक अध्ययन कीजिए।
  92. प्रश्न- रासायनिक एवं जीवाणु युद्ध को समझाइये |
  93. प्रश्न- जनसंहारक अस्त्र (WMD) क्या है?
  94. प्रश्न- रासायनिक एवं जैविक युद्ध के प्रमुख आयामों पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  95. प्रश्न- विश्व में स्थापित विभिन्न उद्योगों में रासायनिक गैसों के उपयोग एवं दुष्प्रभाव परप्रकाश डालिए।
  96. प्रश्न- प्रमुख रासायनिक हथियारों के नाम एवं प्रभाव लिखिए।

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